राष्ट्रीय किसान दिवस: प्रयोग रहा सफल, अब प्रदेश उगाया जायेगा रुद्राक्ष, हरा और लाल धान, इंडोनेशिया का ड्रैगन फ्रूट

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रायपुर (एजेंसी) | छत्तीसगढ़ में कभी सिर्फ दुबराज, मासुरी, एचएमटी, सफरी जैसे धान उगाने वाले किसान अब अलग-अलग रंगों के धान उगा रहे हैं। महानगरों के साथ विदेशी बाजारों की डिमांड को ध्यान में रखते हुए अब किसान यहां ब्लैक, रेड और ग्रीन राइस के साथ रुद्राक्ष, ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन भी कर रहे हैं। इसके अलावा केला, पपीता, अमरुद और आम जैसी फसलों का उत्पादन भी काफी बढ़ा है। अब यहां के किसान उन्नत किस्म की खेती कर इसे बड़ा व्यवसाय बनाकर मुनाफा कमा रहे हैं।

पिछले कुछ सालों में खेती के ट्रेंड में काफी बदलाव आया है। प्रदेश के किसान पारंपरिक खेती के साथ अब वैज्ञानिक खेती पर भी फोकस कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के विकास में किसान और धान दोनों का अहम योगदान है। प्रदेश में लगभग 80 फीसदी किसान हैं। इनमें से अधिकांश किसानों की जिंदगी धान और उससे होने वाली आय पर ही निर्भर करती है।

जो किसान धीरे-धीरे खेती से विमुख हो रहे थे वे अब फिर से इसकी और लौटने लगे हैं। लेकिन अब वे बदले जमाने के मुताबिक खेती कर रहे हैं। महासमुंद, धमतरी और बेमेतरा जिले के किसान संयुक्त रुप से संगठन बनाकर खेती करते हैं। वे अपने खेतों में धान की सामान्य किस्मों के साथ ब्लैक राइस, रेड राइस और ग्रीन राइस के साथ सेंटेड राइस जैसी फसलों का उत्पादन करने के साथ उसकी प्रोसेसिंग कर उसे बाहर भी भेज रहे हैं। इसी तरह जशपुर के किसान रुद्राक्ष, बस्तर, कांकेर, बेमेतरा के किसान ड्रैगन फ्रूट और एप्पल बेर की खेती कर रहे हैं।

जशपुर अघोर आश्रम गम्हरिया में 20 साल पहले रुद्राक्ष का पौधा लगाया था, जिसमें कई मुखी रुद्राक्ष का फल होता है। आश्रम में कई और पौधे है जाे 25 फीट ऊंचे हो चूके है। इसी तरह अपने रिश्तेदार से उपहार में मिले रुद्राक्ष के पौधों को आरा के जमीदार प्रकाश नायक ने प्रयोग के बतौर लगाया था। जाे अब फल देने लगे हैं। प्रयोग के बतौर लगाए गए पौधों में उन्होंने जैविक खाद देकर और देखरेख कर उसे बड़ा किया। पेड़ अब करीब 10 से 15 फीट ऊंचे हो चुके हैं। इस साल पेड़ों में रुद्राक्ष के अच्छे फल लगे हैं। अब उनकी योजना इसे व्यवसायिक रूप देकर बड़े क्षेत्र में पौधे लगाना का है। पूर्ण रूप से विकसित पेड़ की उंचाई 25 से 30 फीट होती है।

हो सकती है अच्छी आय

हिंदू धर्मग्रंथों में रुद्राक्ष का काफी महत्व है। साथ ही औषधीय गुण होने के कारण इसे आयुर्वेद में भी काफी महत्वपूर्ण माना गया है। रुद्राक्ष में केमो फॉर्मेकोलॉजिकल नाम का गुण पाया जाता है। इस गुण से ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रित रहता है। इससे दिल संबंधी रोग होने का खतरा कम हो जाता है। रुद्राक्ष में आयरन, फॉस्फोरस, एल्युमीनियम, कैल्शियम, सोडियम और पोटैशियम गुण पर्याप्त मात्रा में होते हैं। रुद्राक्ष के ये गुण शरीर के नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखते हैं।

ब्लैक राइस को बना दिया ब्रांड

केसवा गांव के मोहन चंद्राकर 10 एकड़ में ब्लैक राइस, जवाफूल और दुबराज जैसा धान पैदा कर रहे हैं। उन्होंने मेडिसिनल वैल्यू वाली सांभा मासुरी किस्म भी लगाई है। किसानी में 2010 में उतरे चंद्राकर ने ब्लैक राइस ही नहीं, कुछ और किस्मों को भी ब्रांड बना दिया है। देश के बड़े शहरों में सोशल मीडिया के जरिए ये ब्रांड बेच रहे हैं।

सालाना 50 करोड़ के ड्रैगन फ्रूट का निर्यात

कांकेर जिले के पखांजुर, बेमेतरा के खपरी और बस्तर के पंडानार के किसान थाईलैंड-इंडोनेशिया का ड्रैगन फ्रूट बड़े पैमाने पर पैदा कर रहे हैं। कोयलीबेड़ा ब्लॉक के 122 गांवों के ज्यादातर किसानों ने ड्रैगन फ्रूट लगाया है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसका रेट 600 से 700 रुपये किलो तक है। कारोबारियों का दावा है कि सिर्फ छत्तीसगढ़ से अब सालाना 50 करोड़ रुपए का ड्रैगन फ्रूट बाहर भेजा जा रहा है।

दुबराज की खूशबू बरकरार

नवापारा राजिम से लगे गोजी गांव के उमीत साहू दुबराज, स्वर्णा और कुदरत जैसी वेरायटी की खेती कर रहे हैं। उमीत 9 साल से लगभग 45 एकड़ में खेती कर रहे हैं और वे 8 एकड़ में जैविक खेती करते हैं। वे अपने खेतों में दुबराज की खुश्बू बरकरार रखे हुए हैं। इसी तरह बेमेतरा जिले के भूपेन्द्र चंद्राकर पपीता और केले की फसल से अपना व्यवसाय बढ़ा रहे हैं।

इस साल 3 लाख किसान बढ़े

पिछले साल तक प्रदेश के 16 लाख किसानों ने धान बेचने के लिए पंजीयन करवाया था। जिनसे सरकार ने लगभग 80 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था। इस साल कर्जा माफ करने के साथ-साथ सरकार ने 25 सौ रुपए क्विंटल धान खरीदा। इन सबका असर ये हुआ है कि पिछले साल की तुलना में इस बार 3 लाख अधिक किसानों ने धान बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है।

रेड, ब्लैक और ग्रीन राइस

धमतरी जिले के कुरुद परसवानी में खेती कर रहे गजेन्द्र चंद्राकर अपने खेत में पांच प्रकार की ब्लैक राइस, रेड राइस, ग्रीन राइस और सेंटेड राइस की खेती कर रहे हैं। चंद्राकर के मुताबिक वे पूरी तरह से जैविक खेती ही करते हैं। उनके मुताबिक लगभग आठ साल पहले उन्होंने असम में रहने वाले अपने मित्र से इस प्रकार के धान का बीज मंगाया था। एरिया के लगभग 40 से 45 किसान लगभग दो से ढाई सौ एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं। ब्लैक राइस की डिमांड छत्तीसगढ़ से बाहर ज्यादा है। अभी लगभग 500 क्विंटल उत्पादन हो रहा है। इसी तरह 100 एकड़ में रेड राइस की खेती कर रहे हैं।

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