छत्तीसगढ़: सरकारी स्कूलों में बच्चों का ‘निखार’ जीरो, 8वीं-9वीं के बच्चों को तीसरी व 5वीं कक्षा के स्तर का ज्ञान नहीं

रायपुर (एजेंसी) | सरकारी स्कूलों में 8वीं के बच्चों के ज्ञान का स्तर तीसरी कक्षा के छात्र से भी कम है। हाई स्कूल में एंट्री कर चुके 9वीं कक्षा के कई छात्र 5वीं कक्षा के बच्चों के लेवल के बराबर नहीं हैं। ये खुलासा सरकारी स्कूलों के बच्चों का स्तर जानने आयोजित की गई निखार कार्यक्रम के तहत स्पेशल परीक्षा में हुआ।

एक प्राइवेट संस्था द्वारा प्रदेशभर में चल रहे निखार कार्यक्रम के तहत 10 जिलों के सभी सरकारी स्कूल के आठवीं और नवमीं कक्षा के बच्चों के पहले सामान्य ज्ञान की बेस लाइन परीक्षा के माध्यम से परख की जा रही है। रायपुर में 8वीं के 23 हजार से ज्यादा और 9 वीं क्लास के 51 हजार से ज्यादा बच्चों की परीक्षा के नतीजे चौंकाने वाले हैं।

रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि 8वीं में पढ़ रहे 28 फीसदी बच्चों को तीसरी क्लास तक का ज्ञान नहीं है। यानी उन्हें सामान्य तौर पर जोड़ घटाने, आकृतियों को पहचाने, निर्जीव और सजीव वस्तुओं में भेद करने की समझ तक नहीं है। वही 9वीं के ज्यादातर बच्चों का सामान्य ज्ञान तीसरी और 5वीं कक्षा के ज्ञान से भी कम है। हिंदी, अंग्रेजी, गणित और विज्ञान में बच्चों का नॉलेज इतना कमजोर है कि बोले हुए आसान शब्द भी वो नहीं लिख पा रहे हैं।

10 जिलों के बच्चो को किया गया था शामिल

बता दे निखार कार्यक्रम में 10 जिलों के 7 हजार 224 स्कूलों के 8वीं व 9वीं के 3 लाख 83 हजार बच्चों को शामिल किया गया है। जब टीचरों से बच्चों की पढ़ाई के स्तर को लेकर सवाल किए। ज्यादातर स्कूलों में एक से दो बच्चे ऐसे मिले जो 8वीं और 9वीं में पहुंच जाने के बाद भी अपना नाम ठीक तरह नहीं लिख पाते हैं। कुछ टीचरों ने हमें नाम न छपने की शर्त पर बताया कि 8वीं तक सबको पास करने का सिस्टम इसकी असली वजह है। पहली से 8वीं तक फेल का सिस्टम नहीं होने से बच्चे 9वीं कक्षा में पहुंचकर बड़ी संख्या में फेल होते हैं।

हिंदी में कब और सब तक नहीं लिख पाते

बेसिक टेस्ट में बच्चों के हिंदी की पढ़ाई का स्तर जानने के लिए टीचरों ने कुछ शब्द बोलकर लिखवाए। कई बच्चे ऐसे मिले जिन्हें हिंदी के सामान्य शब्द जैसे कब, तब, अब जैसे शब्द लिखना नहीं आता। वाक्य विन्यास में भी बच्चे कमजोर पाए गए। पढ़कर समझकर लिखने में भी वो चूके।

अंग्रेजी में अल्फाबेट नहीं पहचानते

8 वीं या 9वीं के बच्चों के टेस्ट में अंग्रेजी भाषा को लेकर बच्चे बुरी तरह से फिसड्‌डी मिले। आठवीं के 6 हजार से ज्यादा और नवमीं में 12 हजार से ज्यादा ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें एबीसीडी समझने में भी दिक्कत आई। राइटिंग और एक्सप्रेशन स्किल्स तो दूर की बात रही। बच्चे सामान्य वाक्य जैसे दिस इज ए बैट तक नहीं पढ़ पाए।

गणित में आकृतियां नहीं पहचान पाते

प्राइवेट स्कूलों में छोटी क्लासों के बच्चे जो आकृतियां पहचान कर वर्ग त्रिभुज घन के कॉलम मैच करते हैं। सरकारी स्कूलों में 8वीं और 9वीं के बच्चे उनमें भी कमजोर पाए गए। दूरी, वजन और सामग्रियों को किस यूनिट में मापा या नापा जाएगा। ये तक बच्चे नहीं जानते।

विज्ञान में सजीव निर्जीव का भेद नहीं जानते

विज्ञान में सामान्य तौर पर पूछे जाने वाले सवाल जैसे सजीव और निर्जीव किसे कहते हैं। समूह में रखे शब्दों में सजीव क्या है निर्जीव क्या ये तक बच्चों को नहीं आता। तस्वीरों में दिखाए प्रयोगशाला के उपकरण भी बच्चे नहीं पहचान पाते हैं। यांत्रिक बल चुंबकीय बल के उदाहरण जैसे सवालों का भी बच्चे नहीं जानते।

रायपुर जिले के सरकारी स्कूलों में रिजल्ट 

कक्षा 8वीं – 23 हजार से ज्यादा बच्चे 

  • तीसरी तक का ज्ञान नहीं – 28 प्रतिशत (6 हजार से ज्यादा बच्चे)
  • पांचवीं तक का ज्ञान नहीं – 45 प्रतिशत (10 हजार से ज्यादा)
  • आठवीं तक का ज्ञान नहीं – 27 प्रतिशत (6 हजार से ज्यादा)

कक्षा 9वीं – 51 हजार से ज्यादा बच्चे 

  • तीसरी तक का ज्ञान नहीं – 24 प्रतिशत (12 हजार से ज्यादा)
  • पांचवीं तक का ज्ञान नहीं – 48 प्रतिशत(24 हजार से ज्यादा)
  • आठवीं तक का ज्ञान नहीं – 29 प्रतिशत(14 हजार से ज्यादा)

(नोट आठवीं में पढ़ रहे बच्चों से इस स्तर पर छठवीं और सातवीं तक की पढ़ाई में दक्षता अपेक्षित थी)

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