‘अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार…’ गीत बना छत्तीसगढ़ का राज्य गीत, सीएम बघेल ने की घोषणा

रायपुर (एजेंसी) | छत्तीसगढ़ राज्य को अपना राज्यगीत मिल चुका है। गीत के बोल हैं अरपा पैरी के धार…इसे लिखा था स्व डॉ नरेंद्र देव वर्मा ने। डॉ नरेंद्र सन्यासी जीवन बीताना चाहते थे। उनके बड़े भाई स्वामी आत्मानंद विवेकानंद के विचारों से प्रभावित होकर संत जीवन में जा चुके थे। आज के रायपुर स्थित विवेकानंद आश्रम के विकास में उनका अहम योगदान था।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इसकी आधिकारिक घोषणा की। आपको बता दे डॉ नरेंद्र देव वर्मा की बेटी मुक्तेश्वरी मुख्यमंत्री बघेल की पत्नी है। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि यह महज एक सुयोग है कि गत दिवस राज्योत्सव के तीसरे दिन इस गीत को राजगीत घोषित किया गया और आज इस गीत के रचयिता डॉ. नरेंद्र देव वर्मा जी की जन्म जयंती भी है।


डॉ नरेंद्र ने कहा था कि संयोग वश परिवार की जवाबदारियों के चलते मैंने गृहस्थ जीवन अपना लिया अन्यथा मैं भी सन्यासी ही बनता। डॉ वर्मा का जन्म 4 नवंबर 1939 को वर्धा में हुआ था। महज 40 वर्ष की उम्र में 8 सितंबर 1979 को रायपुर में उनका निधन हुआ था। उनके पिता धनीराम वर्मा, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे।

हमेशा करते थे छत्तीसगढ़ी में बात

पं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ रमेंद्र नाथ मिश्र ने बताया कि उनके भाई सुरेंद्र नाथ मिश्र के साथ डॉ वर्मा की गहरी दोस्ती रही। मैं भी उनसे अक्सर छोटे भाई की हैसियत से मिलता था। वह जब भी मिलते छत्तीसगढ़ी में ही बात किया करते थे। छत्तीसगढ़ी के विकास और प्रचार के लिए आयोजित कई गोष्ठियों में मैंने उनके साथ मंच साझा किया। उनकी किताबों से छत्तीसगढ़ी पर रिसर्च पर काफी मदद मिलती थी, मैं उनसे इस पर चर्चा भी किया करता था।

सन्यासी भाई को बिठाया जमीन पर

राजनांदगांव के दिग्विजय कॉलेज में प्रोफेसर डॉ चंद्रकुमार जैन ने बताया कि स्व.महासिंह चंद्राकर के लोक कला मंच सोनहा बिहान से डॉ वर्मा जुड़े। यह मंच लोक गीत-संगीत का कार्यक्रम किया करता था। डॉ वर्मा इसमें मंच संचालन करते थे। 1978 में महासमुंद में हुए कार्यक्रम में उनके बड़े भाई स्वामी आत्मानंद कार्यक्रम को देखने गए। उनके लिए बैठने का खास इंतेजाम किया गया था।

मगर डॉ वर्मा ने उनसे कहा कि आपको इस कार्यक्रम को नीचे जमीन पर बैठकर आम लोगों के साथ देखना होगा। स्वामी जी ने इस शर्त को मुस्कुराकर स्वीकार किया और अपने संस्मरण में लिखा कि आज मैं विश्वास कहना चाहूंगा कि नरेंद्र सचमुच तुम मेरे अनुज थे।

यह है वह गीत

अरपा पैरी के धार महानदी हे अपार
इंदिरावती हर पखारय तोरे पईयां
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया
सोहय बिंदिया सही, घाट डोंगरी पहार
चंदा सुरूज बने तोरे नैना
सोनहा धान अइसे अंग, लुगरा हरियर हे रंग
तोर बोली हवे जइसे मैना
अंचरा तोर डोलावय पुरवईया
सरगुजा हे सुग्घर, तोरे मउर मुकुट
रायगढ़ बिलासपुर बने तोरे बजहा
रयपुर कनिहा सही, घाते सुग्गर फबय
दुरूग बस्तर बने पैजनियाँ
नांदगांव नवा करधनियाँ
महूं विनती करव तोर भुँइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईया

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