राम जन्म भूमि अयोध्या: छत्तीसगढ़ के एकमात्र कारसेवक जिन्हें गोली लगी, भीख मांगकर अब गुजार रहे जिंदगी

कोरबा (एजेंसी) | भगवान श्री राम का नाम लेकर कई लोगों ने अपने सियासी करियर में सितारे जोड़ लिए। मगर बहुत से अब भी गुमनामी की जिंदगी ही जी रहे हैं। छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के सुदूर गांव में एक ऐसा ही शख्स इन दिनों भीख मांगकर जिंदगी बिता रहा है। इनका नाम है गेसराम चौहान। कोरबा जिले की करतला तहसील के ग्राम चचिया के मूलनिवासी हैं। वे छत्तीसगढ़ के ऐसे एक मात्र व्यक्ति हैं जिन्हें 1990 की कारसेवा के दौरान पेट में गोली लगी थी। उसके बाद 1992 की कारसेवा में भी शामिल हुए और लाठियां खाई। गेसराम उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने विवादित ढांचा गिराकर अयोध्या में राम मंदिर बनाने का आंदोलन किया।

रो पड़े, पूछा – सच में मंदिर बनने वाला है क्या?

गेसराम को जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में बताया गया तब 65 साल का यह बुजुर्ग अवाक हो गया। हाथ में पकड़ी लाठी, भिक्षापात्र व झोला गिर पड़ा। भावावेश में वे रोने लगे। बार-बार पूछते रहे कि अब तो रामलला का मंदिर सचमुच बनेगा न। आपको प्रणाम जो यह खुशखबरी दे रहे हो। 1990 में कोरबा से कारसेवकों का जत्था जुड़ावन सिंह ठाकुर, किशोर बुटोलिया की प्रमुख अगुवाई में गया था। जुड़ावन सिंह ठाकुर को ग्रामीण क्षेत्र का जिम्मा था। 30 अक्टूबर को सभी फैजाबाद पहुंच चुके थे। उसी दिन कारसेवकों पर पहली गोलीबारी हुई।

इसके बाद 2 नवंबर को जब कारसेवकों का बड़ा जत्था आगे बढ़ा तो फिर से पुलिस व सुरक्षाबलों ने फायरिंग कर दी। जिसमें गेसराम को गोली लगी। कारसेवक आनंद गजेन्द्र ने घायल हुए गेसराम के पेट से बाहर आ गई अंतड़ियों को अंदर करते हुए गमछा बांध दिया। फैजाबाद हास्पिटल में 15 दिन तक गेसराम भर्ती थे। इसके बाद बिलासपुर के अस्पताल में उनका इलाज हुआ।

कारसेवक किशोर बुटोलिया का दावा है कि गेसराम छत्तीसगढ़ के इकलौते कारसेवक थे जिन्हें गोली लगी। 1992 की कारसेवा में भी वे अयोध्या गए। 6 दिसंबर की कारसेवा में लाठियां खायी। कुछ सालों गेसराम के तीन भाइयों ने उनकी खेती किसानी की जमीन भी हड़प ली। ऐसे में कुछ समय रोजी मजदूरी व जड़ी बूटी से ग्रामीणों का इलाज किया उसके बाद बाबा के रूप में गांव गांव घूमने लगे। दो बेटे वीर सिंह व होरीलाल भैसखटाल बालकों के पास रहते हैं। मजदूरी करते हैं।

Leave a Reply