रायपुर (एजेंसी) | समाज को मूल रूप से एकता, भाईचारे तथा समरसता का संदेश देने वाले गुरु घासीदास जी की जयंती आज यानी 18 दिसम्बर को पूरे छत्तीसगढ़ में बड़ी श्रद्धा एवं हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। गुरु घासीदास बाबा का सप्त-सिध्दांत छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए गीता के ज्ञान से कम नही है। वर्तमान समय में जबकि समाज अनेक सामाजिक बुराईयों से जूझ रहा है। बाबा के सिध्दांतों की प्रासंगिकता और ज्यादा बढ़ गई है।
इस अवसर पर सीएम भूपेश बघेल ने प्रदेशवासियो को शुभकामनाये दी। साथ ही उन्होंने पूर्व संध्या पर कल बिलासपुर प्रवास के दौरान जरहाभाठा स्थित महंत बाड़ा पहुंचकर वहां पूजा-अर्चना कर बाबा गुरु घासीदास से प्रदेश की सुख, समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद माँगा।
सतनाम पंथ के प्रवर्तक एवं महान संत बाबा गुरु घासीदास जी की जयन्ती की पूर्व संध्या पर कल बिलासपुर प्रवास के दौरान जरहाभाठा स्थित महंत बाड़ा पहुंचकर वहां पूजा-अर्चना कर बाबा गुरु घासीदास से प्रदेश की सुख, समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद माँगा। pic.twitter.com/QP9YNGITny
— Bhupesh Baghel (@bhupeshbaghel) December 18, 2019
‘मनखे मनखे एक समान’ के रूप में समाज को देखने वाले बाबा गुरु घासीदास के जन्मस्थान का सौभाग्य छत्तीसगढ़ को मिला। 18 दिसम्बर सन् 1756 ई. को बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी में जन्मे बाबा ने अपना संपूर्ण जीवन मानव मात्र के कल्याण के लिए लगा दिया। उनके पिताजी का नाम महंगूदास तथा माताजी का नाम अमरौतिन था।
उनका विवाह सिरपुर निवासी अंजोरी दास की कन्या सफुरा से हुआ था। कहा जाता है कि सत्य और शांति के रहस्य को समझने के लिए बाबा अपने भाई के साथ जगन्नाथपुरी जाने का निर्णय किया। लेकिन रास्ते से ही वापस लौट आए। उन्हें बोध हुआ कि मन की शांति मठों और मंदिरों में भटकने से नहीं मिलेगी बल्कि इसके लिए मन के भीतर ही उपाय ढूँढ़ना होगा। जसके बाद उन्होंने अपने गृहग्राम गिरौदपुरी के पास छातापहाड़ पर औंरा-धौंरा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया। और सतनाम को आत्मसात किया।
इसके बाद मानव कल्याण के लिए बाबा ने सात वचन सतनाम पंथ का सप्त-सिध्दांत दिया। बाबा गुरु घासीदास के सप्त-सिध्दांत इस प्रकार हैं- सतनाम पर विश्वास, मूर्तिपूजा का निषेध, जाति एवं वर्णभेद की समाप्ति, जीव हत्या और मांसाहार का विरोध, व्यसन से मुक्ति, पर-स्त्रीगमन की वर्जना, अपरान्ह खेत न जोतना गुरूजी ने जो सात उपदेश समाज को दिये उन्हे छत्तीसगढ़ के लोग आदर्श जीवन की आचार संहिता मानते हैं।
बाबा ने पूरे छत्तीसगढ़ का दौरा कर सतनाम का प्रचार-प्रसार किया अपने उपदेश मातृभाषा छत्तीसगढ़ी में उपदेश देकर इसे समाज के हर तबके तक पहुंचाने का कार्य किया। उन्होंने सदैव दलित शोषित एवं पीड़ित लोगों का साथ दिया और उनका उत्थान किया। उन्होने मानव-मानव के भेद को समाप्त किया। गिरौदपुरी में उनके पंथ की गुरु गद्दी स्थापित है। जहाँ प्रत्येक वर्ष दिसम्बर माह में उनके जन्म दिवस के अवसर पर अनुयायियों का वृहत मेला लगता है।