देश और प्रदेश के विकास में किसानो का योगदान अभिन्न है। सदियों से हमारी अर्थव्यवस्था प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इनपे आधारित है। परन्तु ‘कम आमदनी और ज्यादा जोखिम’ की हालत से हमारे किसान अन्य व्यवसायों में अपनी किस्मत आजमाने के लिए विवश थे। इस परिस्थिति के बीच एक सुखद संकेत हमारे राज्य छत्तीसगढ़ से आ रही है। देश में यह पहली बार हुआ कि ढाई लाख से अधिक किसान छत्तीसगढ़ में खेती की ओर लौटे। छत्तीसगढ़ का किसान मजबूत होते जा रहा है .
कृषि और पशुपालन को लाभप्रद बनाने के लिए नरवा, गरूवा, घुरवा और बाड़ी योजना के माध्यम से हमारे पुरखों की परम्परा को पुनर्जीवित कर व्यवस्थित किया जा रहा है।छत्तीसगढ़ की यह योजना कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए पूरे देश के लिए नजीर बनती जा रही है। सिंचाई सुविधाएं बढ़ने से अब दूसरी और तीसरी फसल की तैयारी भी जोरो पर है। और इसके लिए मुख्य चुनौतियों (फसल को मवेशियों से बचाना,खेतों की फेंसिंग और रखवाली से कृषि लागत )का सामना लिए राज्य अपनी
श्री बघेल ने बजट में घोषित नई सिंचाई योजनाओं के संबंध में कहा कि बोधघाट परियोजना बिजली के लिए नहीं, बल्कि सिंचाई सुविधा में विस्तार के लिए होगी। बस्तर और सरगुजा में जहां सिंचाई का प्रतिशत शून्य से पांच प्रतिशत है वहां सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने के लिए नई परियोजनाओं को प्रारंभ किया जाएगा।
किसानों को धान का 2500 रूपए प्रति क्विंटल दाम मिलेगा। बजट में घोषित की गई कि राजीव गांधी किसान न्याय योजना में किसानों को समर्थन मूल्य और 2500 रूपए के अंतर की राशि दी जाएगी।अब राज्य सरकार किसानों से 355 रूपए प्रति क्विंटल की दर पर गन्ना खरीदेगी।
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से धान से इथेनॉल के उत्पादन के लिए संयंत्र स्थापना की अनुमति प्रदान करने का आग्रहकिया है और कहा कि यदि अनुमति मिलती है तो किसानों को धान की अच्छी कीमत मिलेगी। पेट्रोलियम ईंधन में खर्च होने वाले पेट्रोडॉलर की बचत होगी।
मुख्य मंत्री बघेल के अनुसार गौठानों के लिए गांवों में 3 से 5 एकड़, चारागाह के लिए 5 से 10 एकड़ जमीन चिन्हित की जानी चाहिए। गौठानों में छाया के लिए घास-फूस से व्यवस्था करनी चाहिए। गौठानों में नस्ल सुधार का काम भी आसानी से किया जा सकता है। पशुपालन को लाभप्रद बनाने के लिए हमारे गौठानों में गोबर से वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन प्रारंभ हो गया है। गौठान प्रबंधन समितियों को 10 हजार रूपए प्रति माह दिए जाएंगे। जिससे चरवाहे के मानदेय की व्यवस्था की जा सकेगी। गौठानों में पशुओं के एक स्थान पर रहने से फेंसिंग का खर्च बचेगा। किसानों के लिए दूसरी फसल लेना आसान होगा। और जब किसान मजबूत होंगे तो गांव, राज्य और देश भी मजबूत होगा।