बिलासपुर (एजेंसी) | छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा रावत नाच महोत्सव बिलासपुर में होता है। सामाजिक एकजुटता का परिचय देने वाला महोत्सव 42वां वर्ष पूरा करने जा रहा है। उसी तरह इस महोत्सव में जीते जाने वाली शील्ड की भी कहानी है। जिस तरह महोत्सव का वर्ष बढ़ता जा रहा है, वैसे ही शील्ड की उम्र भी बढ़ रही है। रावत नाच महोत्सव के प्रथम, द्वितीय और तृतीय शील्ड की उम्र 34 साल हो गई है। वहीं प्रथम, द्वितीय और तृतीय विजेताओं की 183 रुपए की पुरस्कार राशि से शुरू हुए महोत्सव की पुरस्कार राशि आज 1 लाख 37 हजार 438 रुपए हो गई है।
तीन से 40 हुई रनिंग शील्ड मेंटेनेंस में होते हैं 20 हजार खर्च
रावत नाच महोत्सव समिति के संयोजक डॉ. कालीचरण यादव ने बताया कि 1978 में सिटी कोतवाली में तीन शील्ड और प्रथम पुरस्कार 101, द्वितीय 51 और तृतीय 31 रुपए के साथ महोत्सव की शुरुआत हुई थी। इसके बाद 1985 में यह महोत्सव लाल बहादुर शास्त्री मैदान में शुरू हुआ। यहां समाज के लोगों ने रनिंग शील्ड की परंपरा शुरू की। प्रथम पुरस्कार की शील्ड स्व. ललित यादव ने 11000, द्वितीय शील्ड के लिए स्व. बिहारीलाल जायसवाल व स्व. अमरनाथ साव 6-6 हजार, तृतीय शील्ड के लिए स्व. उदईराम यादव, स्व. द्वारिका प्रसाद खंडेलवाल, स्व. रामचंद्र दुबे ने 5-5 हजार रुपए दिए थे।
तीन शील्ड से महोत्सव की शुरुआत हुई थी। आज 40 रनिंग शील्ड हो गई हैं। हर साल जीतने वाला दल शील्ड ले जाता है और फिर अगले वर्ष के महोत्सव में उसे वापस कर देता है। इन 40 शील्ड के मेंटेनेंस में लगभग हर साल 20 हजार रुपए खर्च हो रहे हैं।
1985 में मुरादाबाद में बनी थी प्रथम शील्ड : लाल बहादुर शास्त्री मैदान में 1985 में शुरू हुए महोत्सव में दानदाताओं के पैसे से मुरादाबाद से शील्ड बनवाकर मंगवाई गई थी जो आज तक चल रही है। अब इस शील्ड की उम्र 34 साल हो गई है।
85 ग्रुप के शामिल होने की संभावना
लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में महोत्सव 16 नवंबर को मनाया जाएगा। 2016 में 84 और 2017 में 80 और 2018 में 90 दलों ने इसमें भाग लिया था। इस वर्ष 85 रावत दल के कलाकार सामाजिक संदेश और कृष्ण भक्ति के दोहों के साथ 80 फीट के घेरे में अपनी नृत्य व शस्त्र कला का प्रदर्शन करेंगे। सबसे ज्यादा बाजा की बोली 80 हजार रुपए लमेर के दलों ने लगाई है।
नर्तक दलों के बाजे : नृत्य के दौरान नर्तक दलों द्वारा आमतौर पर गुदरुम, ढोल, डफड़ा, टिमकी, मोहरी, मंजीरा, मृदंग, नगाड़ा, झुमका, डुगडुगी, झुनझुना, घुंघरु, झांझ जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया जाता है। नर्तक दलों के मूल्यांकन के लिए 5 जज नियुक्त किए गए हैं।